गोरखपुर में भी संकरे इलाके में लगी आग तो मचाएगी तबाही
गोरखपुर के कुछ इलाकों में भी अगर दिल्ली जैसी आग लगी तो भी बड़ी तबाही से कोई बचा नहीं सकता है। यहां के कई ऐसे इलाके हैं जहां मानक के अनुरूप होटल, कोचिंग सेंटर और मॉल चल रहे हैं पर अग्निशमन विभाग की नींद नहीं खुल रही है। विभाग ने कुछ जगहों पर तो नोटिस देकर अपना काम पूरा कर लिया है। अंदाजा इसी तरह से लगाया जा सकता है कि पिछले दिनों जिस तरह से मार्ट में आग लगी थी। जांच के बाद उसकी अग्निशमन व्यवस्था पर सवाल उठा था। लेकिन कुछ दिन बाद फिर वह मार्ट शुरू कर दिया गया है।
फैक्ट्री की बात करें तो गोरखपुर में फैक्ट्री शहरी इलाके में नहीं हैं लेकिन होटल और बाजारों में आग लगने पर सुरक्षा पर सवाल जरूर हैं। शहर के चुनिंदा होटलों को छोड़ दिया जाए तो ज्यादातर होटल, रेस्टोरेंट्स व मैरेज हॉल आग लगने की स्थिति में मौजूद ग्राहकों की जान बचाने में सक्षम नहीं हैं। सुरक्षा के इंतजामों की पड़ताल में यह चौंकाने वाली हकीकत सामने आई है। शहर के दर्जनभर होटल के अलावा कहीं भी आग से बचाव के पर्याप्त इंतजाम नहीं हैं। यही नहीं ज्यादातर संचालकों ने विभागों से एनओसी के लिए आवेदन तक नहीं किया है।
शहर में मौजूद कुल लगभग 500 होटल और मैरेज हाउस में महज 135 ही पर्यटन विभाग के रिकॉर्ड में दर्ज हैं जबकि अग्निशमन विभाग में तो इनका ब्यौरा ही नहीं है। अग्निशमन यंत्र की व्यवस्था और एनओसी के लिए पर्यटन विभाग संबंधित होटल मालिकों को पत्र लिखता भी है तो होटल संचालक जबाव तक नहीं देते। पर्यटन विभाग के स्तर पर कार्रवाई होनी है लेकिन कोई कार्रवाई आंकड़ों में दिखती नहीं। बाजार और मॉल की बात करें तो शहर के घंटाघर, पांडेयहाता, रेती रोड पर तो दिन में अग्निशमन की गाड़ी का पहुंचना ही मुश्किल है। अगर गाड़ी पहुंच भी गई तो आग बुझाने के पानी की व्यवस्था आसानी से नहीं हो पाएगी क्योंकि शहर के ज्यादातर हाइड्रेंट लापता हो गए हैं।
50 फीसदी ने नहीं ली एनओसी
अग्निशमन विभाग के पास तो शहर में होटल व मैरेज हाउस का ब्योरा तक नहीं है। जानकारों के मुताबिक करीब 50 फीसदी होटल संचालकों ने एनओसी नहीं लिया है। पर्यटन विभाग के मुताबिक इसे लेकर सभी होटलों, रेस्टोरेंट और मैरेज हाउस में फायर सेफ्टी मानक के साथ-साथ संचालकों व स्टाफ के लिए मॉक ड्रिल कराने के लिए पत्र भी लिखा गया था। लेकिन इसका पालन नहीं किया जा रहा है।
किचन में नहीं हैं अग्निशमन यंत्र
कई होटल, रेस्टोरेंट और मैरेज हाउस घनी आबादी के बीच स्थित हैं। इन होटल, रेस्टोरेंट और मैरेज हाउस में खुलेआम गैस सिलेंडर को चूल्हे के पास रखकर खाना बनाया जाता है। लेकिन यहां अग्निशमन यंत्र तक की व्यवस्था नहीं होती है। यहां आग से बचाव के लिए अन्य उपायों पर भी ध्यान नहीं दिया जा रहा। ऐसे में अगर आग लग जाए तो बड़ी संख्या में लोगों की जान जा सकती है।
अस्पतालों में तैयार हो रहा है फायर हाईड्रेंट सिस्टम
जिले के सरकारी अस्पताल में मरीजों की सुरक्षा भगवान भरोसे ही है। अस्पतालों में आग से निपटने के उचित इंतजाम नहीं हैं। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में फायर हाइड्रेंट लगा है। जिला अस्पताल में इस सिस्टम को लगाने की प्रक्रिया चल रही है। 300 बेड वाले महिला अस्पताल के 100 बेड के मातृ विंग में ही फायर हाईड्रेंट सिस्टम लगा है। दूसरे वार्ड में फायर इन्स्टीग्यूशर लगे हैं। अस्पताल के लेबर रूम, जनरल वार्ड और प्राइवेट वार्ड में आग बुझाने का कोई इंतजाम नहीं है। इन तीनों में करीब 140 महिलाएं भर्ती हैं। अस्पताल में ज्यादातर कर्मचारियों के पास फायर इन्स्टीग्यूशर चलाने का प्रशिक्षण नहीं है।
प्रोविजनल एनओसी पर चल रहे अस्पताल
शासन ने वर्ष 2016 से निजी अस्पतालों के पंजीकरण के लिए अग्निशमन विभाग का एनओसी (अनापत्ति प्रमाण पत्र) अनिवार्य कर दिया है। ऐसे में निजी अस्पताल प्रबंधन अस्थाई एनओसी देकर ही सीएमओ कार्यालय में पंजीकरण करवा पा रहे हैं। जिला व महिला अस्पताल के अलावा बीआरडी को भी विभाग ने अस्थाई एनओसी ही दिया है।