मुक्तिबोध को समझने के दृष्टिकोण से शशिकला की पुस्तक महत्वपूर्णः राममोहन पाठक
वाराणसी में राजघाट स्थित वसंत महिला महाविद्यालय में बुधवार को डाक्टर शशिकला त्रिपाठी की पुस्तक मुक्तिबोध का रचनात्मक संघर्ष का विमोचन हुआ। कालेज के हिंदी विभाग में आयोजित समारोह में दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा के कुलपति प्रोफेसर राममोहन पाठक ने कहा कि यह पुस्तक मुक्तिबोध को समझने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण है। उन्होंने यह भी कहा कि मुक्तिबोध की पत्रकारिता के आयाम पर अभी काम करना बाकी है। मुक्तिबोध समय के सेतु हैं। साहित्य का सेतु मानव जीवन से बनता है। मानव जीवन की सहजता सह-जीवन में है, जो कि मुक्तिबोध की कविताओं में देखने को मिलती है। मुक्तिबोध की कविताओं में गांधी विद्यमान हैं।
जेएनयू में हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर ओमप्रकाश सिंह ने कहा कि मुक्तिबोध की गद्य और पद्य प्रतिमानों को समझने की जरूरत बार बार होगी। दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर कैलाश नारायण तिवारी ने कहा कि मार्क्सवादी कवियों में परंपरा से सर्वाधिक ग्रहण और दाय के रूप में देने का कार्य मुक्तिबोध ने किया। प्रोफेसर वशिष्ठ नारायण त्रिपाठी ने कहा कि वे मानवतावादी कवि, निबंधकार, कहानीकार, लेखक हैं। पहले से बनाये फ्रेम में टिकते नहीं। प्रोफेसर अवधेश प्रधान ने कहा कि उनके काव्य का फलक विशाल है। वह मनुष्यता के कवि हैं। मनुष्य के अंतर्मन में पड़े जालों को वे छांटते हैं। उन्होंने मुक्तिबोध के मुक्ति की अवधारणा पर प्रकाश डाला।
समारोह की अध्यक्षता करते हुए वरिष्ठ कवियित्री प्रोफेसर चंद्रकला त्रिपाठी ने कहा कि मुक्तिबोध बड़े कवि इसलिए हैं कि वे अंतःकरण के आयतन की बात करते हैं। जनता का कवि वह है, जिसके अंतःकरण का विस्तार हो, तब ही मुक्ति भी मिलेगी। ऐसे आत्मसजग कवि जो अपने जीवन की विसंगतियों से टूटते नही। कार्यक्रम की समन्वयक और पुस्तक की संपादक डॉ शशिकला त्रिपाठी ने कविता की वैचारिकी पर बात करते हुए कहा कि उनकी कविता समतल मैदानों की कविता नहीं है। संघर्ष से भरी ऊबड़-खाबड़ कविता की जमीन नई अभिव्यक्ति की तलाश करती है।
संचालन डॉ वन्दना झा ने किया। स्वागत करते हुए प्राचार्या डॉ अलका सिंह ने कहा कि महाविद्यालय में मुक्तिबोध के जन्मशताब्दी वर्ष मनाने के पश्चात अब उनकी पुस्तक का विमोचन होना सिद्ध करता है कि संगोष्ठी ने अपनी सिद्धि को प्राप्त किया है।
द्वितीय सत्र में काव्य पाठ का आयोजन किया गया। इसमें महाविद्यालय की छात्राओं श्वेता प्रियदर्शी, रश्मि सुमन, आकर्षिता सिंह के साथ इलाहाबाद से आये डॉ अमरजीत राम, प्रोफेसर कैलाश नाथ तिवारी, डॉ सुरारी पांडेय, डॉ नफीज बानो, डॉ शशिकला त्रिपाठी, डॉ चंद्रकला त्रिपाठी, राजेन्द्र आहुति जी, प्रशासनिक अधिकारी नीरज कुमार और डॉ वंदना झा ने काव्य पाठ किया।अध्यक्षता वरिष्ठ कवि केशव शरण ने की। चंद्रकला त्रिपाठी की कविता "थोड़ा थोड़ा रोज सुखाना गीलापन, आंखों का बाढ़ और बरसात का, सबके हिस्से का सूरज होकर" कविता की पंक्ति ने खूब सुर्खियां बटोरीं। इस सत्र का संचालन रश्मि सुमंन ने और धन्यवाद ज्ञापन डॉ शशिकला त्रिपाठी ने किया।